क्या खुद को सही सिद्ध करना हमारी तरक्की में हमे मद्द्त करता है।
हमारे पास हमारे कृत्यों को सही साबित करने के तर्क होते है।
हम कुछ भी करते है चाहे वो गलत हो या सही। हम उसको सही साबित करने के लिए बहुत सारे तर्क दे सकते है। तर्को का कोई आधार भी हो सकता है और नहीं भी।
यह तो हम अपने दिल की गहराई में जानते है कि हम सही कर रहे है या गलत। पर दुसरो के सामने हम अपने आप को सही सिद्ध करने की कोशिश करते है। हमारे पास तत्य होते है, कहानी होती है और हम खुद ही गवाह होते है और खुद ही वकील।
पर क्या खुद को सही सिद्ध करना हमारी तरक्की में हमे मद्द्त करता है।
नहीं !
दोनों में से किसी भी स्थिति में चाहे हम सही हो या गलत। खुद को सही साबित करना का तर्क व्यर्थ ही होता है। इसका हमारी सफलता या असफलता पर कोई काश फर्क नहीं पड़ता।
इसीलिए दुसरो को अपने बारे में समझाने से अच्छा है कि हम केवल अपने कार्य पर ध्यान लगाए और बातो की बजाय केवल अपने काम से दुसरो तक अपनी बात पहुंचाए।
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