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Showing posts from September, 2021

क्यों कुछ लोग एक अच्छे स्तर पर पहुँच कर अपनी जिंदगी ख़राब कर लेते है ?

क्या अपने कभी किसी व्यक्ति को देखा है जो एक अच्छी जिंदगी जी रहे होते है। उनकी जिंदगी अच्छी चल रही होती है फिर एक दिन आपको पता चलता है कि उनकी जिंदगी में कुछ भी ठीक नहीं रहा।  ऐसा मैंने व्यक्तियों की पर्सनल, प्रोफेशनल और बिज़नेस सभी जिंदगियों में देखा है।  मैंने इस चीज़ को तब तक अनुभव नहीं किया था जब तक कि मैंने अपने ब्लॉग को अपने हाथ से खराब नहीं कर लिया। शुरुआत में मेरी समझ में नहीं आया कि यह सब कुछ क्यों हो रहा है।  मैंने एक अच्छे स्तर पर अपने ब्लॉग को ले जाकर ख़राब कर दिया।  मै इसे self destructive (आत्म विनाशकारी) गुण कहता हूँ। यह हम सब में होता है। किसी में ज्यादा और किसी में कम। जरूरी नहीं कि अगर जिस चीज़ में मेरा आत्म विनाशकारी गुण जागृत होगा उसमे ही किसी और का हो।  आपका किसी और चीज़ में हो सकता है। यह जिंदगी के छोटे स्तर से लेकर राजनीती या बिज़नेस के बड़े से बड़े स्तर तक हो सकता है।  कभी कभी कोई व्यक्ति मेहनत करके एक अच्छा मुकाम हाशिल करता है और जब उसको उसका लाभ मिलना होता है वो कोई ऐसा कदम उठा लेता है कि उसका सब कुछ खत्म हो जाता है।  फिर वो दुबारा वहां पहुँचने की कोशिश करता है पर कभी

आज के समय का सबसे अच्छा फार्मा बिज़नेस आईडिया

अगर मै किसी को आज के समय का सबसे अच्छा बिज़नेस आईडिया दे सकता हूँ तो वो है - इ-फार्मेसी ! इ-फार्मेसी ही क्यों ? क्यूंकि इ-फार्मेसी अभी बड़ी तेजी से ग्रो कर रही है और सबसे मजेदार बात - अभी ये रेगुलेटेड नहीं है। कोई भी एक्ट इ-फार्मेसी को सीधे तौर पर रेगुलेट नहीं करता। वह केवल ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट और कोर्ट के फैसलों के आधार पर ही रगुलेटेड होता है।  यह 2000 की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की तरह है। अपने शुरूआती दौर में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी इतना रेगुलेटेड नहीं था। लाइसेंस  इतने कायदे नहीं थे जितने आज है। कुछ कमियां होने के बावजूद लाइसेंस मिल जाया करते थे।  उस विनियमित दौर में कमाया हुआ पैसा तब काम आया जब कॉम्प्लीकेशन्स बढ़ने लगे। नियम सख्त होने लगे।  जब आपने विनियमित दौर में अपना बिज़नेस स्थापित कर लिया होता है तो आपके पास इतना इंफ्रास्ट्रचर और फण्ड हो चूका होता है कि आप नियम बदलने के साथ उनको पूरा करने की हमीयत रखते हो।  मुझे पता है कि फ़ूड एक्ट से पहले फ़ूड सप्लीमेंट कैसे बनाया जाता था। बिना लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन के , केवल एक शॉप एक्ट रजिस्ट्रेशन पर।  जिन्होंने उस वक़्त बिज़नेस स्थापित कर लिय

पेमेंट मरने के रिस्क को कैसे कम करे ?

 अगर आप बिज़नेस में हो तो अनिश्चिताये हमेशा आपका पीछा करती रहेगी। हमेशा ही आपको रिस्क और बोल्ड डिसिशन लेते रहना पड़ता है।  बिज़नेस में एक सबसे बड़ा रिस्क होता है - पेमेंट का रिस्क।  आपको अगर बिज़नेस में बने रहना है या जल्दी ग्रो करना है तो आपको क्रेडिट तो मार्किट में देना ही पड़ेगा। क्रेडिट देने का मतलब है कि अब अपने माल सामने वाली पार्टी को दे दिया। अब आप आर्डर के लिए भी फ़ोन करोगे और पेमेंट के लिए भी।  आपने अपने माल का मालिक अपने कस्टमर को बना दिया। अब उसके उप्पर है वो आपकी पेमेंट कैसे करता है। अगर आपका कस्टमर सही है तो कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन अगर कस्टमर सही नहीं है या उसके साथ हालात सही नहीं है तो आपका माल तो आपके गोदाम से जा ही चूका होगा और साथ ही साथ आपका पैसा भी।  वो आपको अब मिलने की समभावना बहुत ही कम होगी।  बिज़नेस में पेमेंट मरना एक आम बात है। आप चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।  बैंकिंग सिस्टम कितना मजबूत होता है। लोग उनसे लोन लेकर वापिस नहीं करते चाहे वो कोर्ट तक चले जाये तब छोटे बिज़नेस की तो औकात ही कहाँ है।  आप इसे खत्म नहीं कर सकते पर आप इस रिस्क को कम से कम कर सकते हो।  इसे कम करन

स्मार्ट वर्क क्या होता है ?

 स्मार्ट वर्क क्या होता है ? असल में स्मार्ट वर्क के बारे में हमारी धारणाए बहुत गलत है। इसी वजह से हम अपने कामो को स्मार्ट वर्क मान कर चल रहे होते है पर वास्तव में वो स्मार्ट वर्क नहीं होता।  स्मार्ट वर्क किसी भी कार्य को करने का सबसे आसान और सरल रास्ते ढूंढ़ने को कहते है जिससे किसी कार्य को करने के समय और संशाधनो को बचाया जा सके। (शुरुआत में कभी कभी हो सकता है यह कठिन रास्ता लगे ) उदाहरण के तोर पर अगर हम लेते है तो पहले स्टॉक का काम मैन्युअल करते थे। स्टॉक रजिस्टर को व्यक्ति मेन्टेन करता था। क्या आ रहा है , क्या जा रहा है वो सब लिखता था। उसको हर बार नाम लिखना पड़ता था और अगर उसको स्टॉक की पिछली डिटेल निकलवानी थी तो उसको सभी पेजो को पलट कर एक लम्बा काम करना पड़ता था। फिर किसी ने दिमाग लगाया और कंप्यूटर का उपयोग करना शुरू कर दिया। दिनों का काम घंटो में होने लगा और घंटो का काम मिनटों में।  तो इसको हम स्मार्ट वर्क कहेंगे। क्यूंकि यहाँ काम की सरलता बड़ी है और वो आसान हुआ है।  फिर क्या हुआ - देखते देखते सभी कंप्यूटर ले आये। और सबका काम आसानी और सरलता से होने लगा।  तो अब वो स्मार्ट वर्क नहीं रहा

आपकी जिंदगी में बहुत मौके ऐसे आते है जब आपको लगता है कि परिणाम भी मायने रखते है।

 आपकी जिंदगी में बहुत मौके ऐसे आते है जब आपको लगता है कि परिणाम भी मायने रखते है।  अक्सर हम सुनते आये है कि सफर का मजा लीजिये। फल की चिंता मत करिये, केवल कर्म करिये। पर आपकी जिंदगी में बहुत बार ऐसा होता है जब आपको महसूस होता है कि अगर मुझे परिणाम ही नहीं मिल रहे तो क्या फायदा इन सब चीज़ो का।  पर फिर भी आपके हाथ में कुछ नहीं होता सवाये या इंतज़ार करने के कि आपको परिणाम मिलना शुरू हो।  यह हर इंटरप्रेन्योर के धैर्य की परीक्षा होती है। यह खेल एक तरह से साँस रोकने का होता है। जितनी देर तक कोई साँस रोक सकता है उसकी सफलता की गुंजहिस उतनी ही ज्यादा होती है।  मै भूल चूका हूँ कि कब मैंने आखिरी बारी वो परिणाम प्राप्त किये थे जिनको मै चाहता था।  जो यह कहता है कि परिणाम मायने नहीं रखते वो गलत कहता है। परिणाम भी उतने ही मायने रखते है जितना की प्रयास। कभी परिणाम हमे अधिक प्रयास करने से रोकता है तो कभी अधिक प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है।   

आपको अगर एन्त्रेप्रेंयूर्शिप में कदम रखना है तो अपने दम पर रखिये।

 आपको अगर एन्त्रेप्रेंयूर्शिप में कदम रखना है तो अपने दम पर रखिये।  यह सफर जितना कूल और डैशिंग लगता है उतना होता नहीं है। यह आपके सारे सपनो को तोड़ देगा। यह आपको उस अकेलेपन का अहसास कराएगा जहाँ आपकी दुनिया आप और आपके काम तक सिमट कर रह जाएगी।  अगर आपको वीकेंड मानना और पार्टी करना अच्छा लगता है। आप एक सोशल इंसान हो जो लोगो से मिले बिना नहीं रह सकता। जिसको घंटो तक काम करते रहना पसंद नहीं है। जो अपनी शर्तो पर काम करना चाहता है। अगर ये खूबिया आपमें है।  तो मेरे हिसाब से आपमें इंटरप्रेन्योर बनने के गुण नहीं है।  अगर आप पैसे से मोह रखते हो और उसका नुकसान नहीं देखना चाहते। आपको पसंद है कि आपके पास हर महीने एक निश्चित कमायी आणि चाहिए तो यह आपके लिए नहीं है।  उप्पर दी हुए खूबियों से आप एक बड़े बिजनेसमैन बन सकते हो। आप बहुत पैसा भी कमा सकते हो पर जहाँ तक इंटरप्रेन्योर बनने की बात है तो आप इंटरप्रेन्योर नहीं बन सकते।  हजारो घंटो की मेहनत, दुनिया से सारे रिश्ते तोड़ देने वाला एकांतवास, अपनी सारी पूंजी लगा देने के बाद फाइनेंसियल प्रॉब्लम और भी बहुत सारी ऐसी चीज़े होती है जो आपको करनी पड़ती है।  और उसके ब

हमारा बिज़नेस हमारी शारीरिक संरचना से काफी मिलता जुलता होता है।

हमारा बिज़नेस हमारी शारीरिक संरचना से काफी मिलता जुलता होता है।  हमारी शरीरिक क्षमता के लिए स्केलेटन (कंकाल) मजबूत होना जरूरी है। इसे मै इंफ्रास्ट्रक्चर कहता हूँ।  कोई भी मनुष्य किस तरह काम कर सकता है , स्वस्थ रह सकता है वो निर्भर करता है कि उसका कंकाल कितना स्वस्थ है। आपके शरीर के किसी भी हिस्से में कोई दिक़्क़त हो तब भी आप काम कर सकते हो पर अगर आपके कंकाल के किसी हिस्से में कोई दिक़्क़त है तो आप शायद ठीक से खड़े भी नहीं हो सकते।  यही बिज़नेस के साथ होता है।  शुरूआती दौर में कुछ बिज़नेस अच्छी पकड़ बनाने लग जाते है पर फिर वो झूझने लगते है।  पहले पांच साल में बिज़नेस बंद होने के कई कारण हो सकते है पर मेरे हिसाब से एक मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर न बना पाना भी इसके कारणो में से एक है।  हर बिज़नेस की अलग जरूरत होती है और उसी जरूरत के हिसाब से उसका इंफ्रास्ट्रक्चर निर्भर करता है। मेरा इंफ्रास्ट्रक्चर मेरा स्टॉक है और मै उसे मजबूत करने की कोशिश करता हूँ। क्यूंकि अगर मेरे पास स्टॉक नहीं होगा तो मै ग्रो नहीं कर सकता।  और मुझे लगता है कि मेरे बिज़नेस के पहले पांच सालो में अगर मै खुद को बचाकर रख सका तो वो अपने स्

शक्ति के साथ जिम्मेदारियां भी आती है।

शक्ति के साथ जिम्मेदारियां भी आती है।  चाहे जिंदगी हो या प्रोफेशनल लाइफ, यह नियम हर जगह लागु होता है।  जिंदगी में जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है। हमारी शक्ति बढ़ती जाती है। हमे अपने फैसले करने की ताकत मिलती जाती है , हमारे पास पैसे कमाने के सोर्स भी आ जाते है।  बचपन में हमे हर चीज़ अपने माता पिता से पूछ कर करनी पड़ती थी। अब हम अपनी जिंदगी के खुद मालिक होते है  प्रोफेशनल लाइफ में भी ऐसा ही होता है। हम जब शुरुआत करते है तो हमारे पास सिमित ही विकल्प होते है। हमे केवल वह ही करना पड़ता है जो हमारे सीनियर हमे करने को कहते है या सिखाते है।  फिर हमे प्रोफेशनल लाइफ में आगे बढ़ने लगते है। हमे प्रमोशन मिलने लगती है। हम सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ने लगते है।  उसके साथ साथ हमारी शक्तियां भी बढ़ने लगती है। पहले हर फैसला हमे अपने से उप्पेर वालो से पूछ कर लेना पड़ता था पर अब हम कुछ फैसले खुद कर सकते है। अगर हम प्रोफेशनल लाइफ के सर्वोच्च पद पर हो तो 95 % से ज्यादा फैसले खुद ही लेने पड़ते है।  मैंने पाया है कि शक्ति को सब पाना चाहते है पर जिम्मेदारियां कोई नहीं चाहता।  हम भविष्य में सफल होंगे या असफल वो यहाँ से बदल जाता

बिज़नेस में आपका पैसा केवल वही है जो प्रोडक्ट/सर्विस पर आपका प्रॉफिट ऑफ़ मार्जिन है।

 बिज़नेस में आपका पैसा केवल वही है जो प्रोडक्ट/सर्विस पर आपका प्रॉफिट ऑफ़ मार्जिन है।  मै इस बात को दोबारा दोहराना चाहता हूँ कि बिज़नेस में आपका पैसा केवल वही है जो प्रोडक्ट/सर्विस पर आपका प्रॉफिट ऑफ़ मार्जिन है।  कभी भी बिज़नेस में मिला वेंडर से क्रेडिट या बिज़नेस के लिए लिया गया लोन आपका पैसा नहीं है वो आपको वापिस करना है। वो केवल आपको बिज़नेस में मद्त करने के लिए है, न कि वो आपके लिए है।  मै इस बात पर इस लिए जोर देता हूँ क्यूंकि 95% लोग इस बात की हम्मीयत को नहीं समझते है। मैंने बहुत से बिज़नेस को बर्बाद होते हुए देखा है। इस वजह से नहीं की वो खराब थे उनके प्रोडक्ट ख़राब थे बल्कि इस वजह से कि उन्होंने उस पैसे को अपना माना जो उनका नहीं था।  कुछ लोग कहेंगे कि मानने से क्या होता है। मानने से क्या वो उनका हो जायेगा।  मानने से बहुत कुछ बदल जाता है।  जब हमे लगता है कि वो पैसा हमारा है तो हम उसको अपने हिसाब से उपयोग करना शुरू कर देते है। और जब हम उस पैसे के लिए आर्थिक फैसले लेना शुरू कर देते है जो हमारा है ही नहीं तो बिज़नेस में दिक्क़ते होना शुरू हो जाती है।  इसीलिए बहुत से लोग उस पैसे का जो उसके वेंड

बिज़नेस में सफल होने के लिए केवल माल बेचना ही सबकुछ नहीं है।

पता नहीं लोग इस बात को क्यों नहीं सीखना चाहते कि बिज़नेस में सफल होने के लिए केवल माल बेचना ही सबकुछ नहीं है। एक बहुत ही गहन आर्थिक समझदारी की जरूरत होती है।  मैंने यह चीज़ लोगो में बहुत ही सामान्य पायी है कि थोड़ा सा बिज़नेस स्थापित करने के बाद उनको लगने लगता है कि यह बहुत आसान है अब उन्हें एक अगले लक्ष्य पर निकलना चाहिए।  उनको लगता है कि सबकुछ उनकी वजह से हो रहा है और वह उस पुरे तंत्र को नजरअंदाज कर देते है जो उसके पीछे लगा हुआ है।  और वो इस आधी पकी सफलता पर एक बहुत बड़ा लक्ष्य बना लेते है। यहाँ अगर वो अपनी आर्थिक गणना सही करते है तो वो अपने लक्ष्य तक पहुँच जायेंगे।  पर अगर वो अपनी आर्थिक गणना को सही तरह नहीं देख पाए और केवल अनुमानों एवं सम्भवनाओ के भरोसे पर आगे बढ़ने का फैसला करते है तो वो अपनी अध् पकी सफलता को भी दांव पर लगा देते है।  मैंने ऐसे लोगो से बहुत धोखे खाये है पर मुझे अफ़सोस है कि वो मेरी बातो को समझ नहीं पाए। अगर वो मेरी बातो को समझ सकते तो गलतियों की गुंजाइश बहुत कम होती।  जब हम बिज़नेस में शुरूआती सफलता का स्वाद चकते है तो हम अपने आपको एक सफल इंटरप्रेन्योर मानने लगते है। लेकिन