बिज़नेस में सफल होने के लिए केवल माल बेचना ही सबकुछ नहीं है।

पता नहीं लोग इस बात को क्यों नहीं सीखना चाहते कि बिज़नेस में सफल होने के लिए केवल माल बेचना ही सबकुछ नहीं है। एक बहुत ही गहन आर्थिक समझदारी की जरूरत होती है। 

मैंने यह चीज़ लोगो में बहुत ही सामान्य पायी है कि थोड़ा सा बिज़नेस स्थापित करने के बाद उनको लगने लगता है कि यह बहुत आसान है अब उन्हें एक अगले लक्ष्य पर निकलना चाहिए। 

उनको लगता है कि सबकुछ उनकी वजह से हो रहा है और वह उस पुरे तंत्र को नजरअंदाज कर देते है जो उसके पीछे लगा हुआ है। 

और वो इस आधी पकी सफलता पर एक बहुत बड़ा लक्ष्य बना लेते है। यहाँ अगर वो अपनी आर्थिक गणना सही करते है तो वो अपने लक्ष्य तक पहुँच जायेंगे। 

पर अगर वो अपनी आर्थिक गणना को सही तरह नहीं देख पाए और केवल अनुमानों एवं सम्भवनाओ के भरोसे पर आगे बढ़ने का फैसला करते है तो वो अपनी अध् पकी सफलता को भी दांव पर लगा देते है। 

मैंने ऐसे लोगो से बहुत धोखे खाये है पर मुझे अफ़सोस है कि वो मेरी बातो को समझ नहीं पाए। अगर वो मेरी बातो को समझ सकते तो गलतियों की गुंजाइश बहुत कम होती। 

जब हम बिज़नेस में शुरूआती सफलता का स्वाद चकते है तो हम अपने आपको एक सफल इंटरप्रेन्योर मानने लगते है। लेकिन वो बिज़नेस में हनीमून की तरह होता है। 

असल सफर तो अभी शुरू हुआ होता है। 

लेकिन इस हनीमून के बाद हममे से बहुत व्यक्ति बहुत बड़े निर्णय लेते है। 

अगर बिज़नेस में बात करूँ तो बहुत व्यक्ति जो किसी कंपनी, डिस्ट्रीब्यूटर, एजेंसी से जुड़े होते है। असल में हर बिज़नेस के कुछ नींव होती है। आपका वेंडर आपकी नींव हो सकता है , आपका कोई कस्टमर आपकी नींव हो सकता है, कोई सहयोगी आपकी नींव हो सकता है। वो कुछ भी हो सकता है। एक से ज्यादा भी हो सकता है। 

पर मेरे हिसाब से हर बिज़नेस की नींव जरूर होती है जो उसको मजबूती देती है। एक बिज़नेस को तब तक उस नींव की जरूरत होती है जब तक कि वो ऑटो पायलट मोड पर न आ जाये। यानि बहुत बड़ी न हो जाये। 

पर ज्यादातर लोग बिज़नेस में यह गलती करते है कि वो यह जान नहीं पाती कि उनकी नीवं क्या है और वो उसी टहनी को ही काटने लगती है जिस पर वो बैठे है। 

जब तक उनको होश आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और फिर मार्किट को दोष देने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता। 

यही वजह होती है कि कुछ ओवर स्मार्ट लोग शुरुआत में तो आगे निकल जाते है पर कुछ समय बाद वो दाड़म से निचे गिर जाते है। 

यहाँ टहनी काटने से मतलब यह है कि वो अपने आर्थिक फैसलों से एक दीमक की तरह अपने बिज़नेस को खाते रहते है। एक दिन उनको पता लगता है कि वह एक आर्थिक जाल फस चुके है। 

ऐसा नहीं होता कि यह छह महीने या साल में होता है। इसको होने में दस साल भी लग सकते है या ज्यादा भी। यह आर्थिक जाल इस तरह से फैलता रहता है कि जब तक हमे पता चलता है यह पुरे बिज़नेस को बर्बाद कर देता है। 

पर इसकी शुरुआत बिज़नेस के शुरूआती कुछ सालो में ही हो जाती है। 

इसीलिए अपने बिज़नेस के पैसे को बचा कर रखिये। अपने वेंडर्स का पैसा पहले दे और प्रॉफिट ऑफ़ मार्जिन में से कुछ आगे इन्वेस्ट करो और अपने लिए केवल उतना ही निकाले जितना आपकी जीविका के लिए जरूरी हो। 

एक बात हमेशा याद रखिये। बिज़नेस में केवल आपका पैसा आपका मार्जिन है। अगर वेंडर ने पैसा लगाया है तो कॉस्ट उसकी है। अगर बैंक का पैसा लगा है तो कॉस्ट का पैसा बैंक का है। आप मार्जिन के पैसे को अपने हिसाब से उपयोग करने के योग्य है पर अपने वेंडर के या बैंक के पैसे को समय पर वापिस कर देंगे तभी लॉन्ग टर्म में आपके बिज़नेस के लिए उपयोगी होगा। 

अगर वेंडर के या बैंक के पैसे को अपना समझ कर उपयोग करेंगे तो सच कह रहा हूँ मैंने एक समय के सफल व्यवसायों को बिकते हुए देखा है। इसलिए नहीं कि उनके पास काम नहीं था इसलिए कि उनकी आर्थिक गणना विवेक और धैर्य पर आधारित न होकर दिखावे और लोभ पर आधारित थी। 

उम्मीद है आप वो गलती नहीं करेंगे। 

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