क्यों कुछ लोग एक अच्छे स्तर पर पहुँच कर अपनी जिंदगी ख़राब कर लेते है ?
क्या अपने कभी किसी व्यक्ति को देखा है जो एक अच्छी जिंदगी जी रहे होते है। उनकी जिंदगी अच्छी चल रही होती है फिर एक दिन आपको पता चलता है कि उनकी जिंदगी में कुछ भी ठीक नहीं रहा।
ऐसा मैंने व्यक्तियों की पर्सनल, प्रोफेशनल और बिज़नेस सभी जिंदगियों में देखा है।
मैंने इस चीज़ को तब तक अनुभव नहीं किया था जब तक कि मैंने अपने ब्लॉग को अपने हाथ से खराब नहीं कर लिया। शुरुआत में मेरी समझ में नहीं आया कि यह सब कुछ क्यों हो रहा है।
मैंने एक अच्छे स्तर पर अपने ब्लॉग को ले जाकर ख़राब कर दिया।
मै इसे self destructive (आत्म विनाशकारी) गुण कहता हूँ। यह हम सब में होता है। किसी में ज्यादा और किसी में कम। जरूरी नहीं कि अगर जिस चीज़ में मेरा आत्म विनाशकारी गुण जागृत होगा उसमे ही किसी और का हो।
आपका किसी और चीज़ में हो सकता है। यह जिंदगी के छोटे स्तर से लेकर राजनीती या बिज़नेस के बड़े से बड़े स्तर तक हो सकता है।
कभी कभी कोई व्यक्ति मेहनत करके एक अच्छा मुकाम हाशिल करता है और जब उसको उसका लाभ मिलना होता है वो कोई ऐसा कदम उठा लेता है कि उसका सब कुछ खत्म हो जाता है।
फिर वो दुबारा वहां पहुँचने की कोशिश करता है पर कभी पहुँच नहीं पता।
आत्म विनाशकारी गुण कब ज्यादा काम करता है?
आत्म विनाशकारी गुण तब ज्यादा प्रभावी होता है जब हमारे पास भविष्य के बारे में कोई रास्ता नहीं होता और हमे लगता है कि हम ज्यादा के हक़दार है पर प्रकृति या लोग हमारे साथ गलत कर रहे है और हमे इसी वक़्त सब बदलने की जरूरत है।
या हम किसी चीज़ को लम्बे समय से इग्नोर कर रहे है और अब वो हमे वो परिणाम नहीं दे रही है जो हमे मिल रहे थे या हमे लगता है कि हमे मिलने चाहिए।
या हमारे साथ कुछ अकस्मात घटित होता है। किसी ने धोखा दे दिया या एक साथ बहुत बड़ा नुकसान हो जाये।
यह सब ज्यादातर तभी होता है जब हम एक अच्छी स्थिति में होते है और कुछ अकस्मात घटित हो जाता है या अच्छी स्थिति में होकर भी खुद को पीड़ित समझने लगते है और जो हमे लगता है हमे मिलना चाहिए उसको किसी भी तरह से हासिल करने की कोशिश करते है।
तब हमारा तत्काल सुधार वाला व्यक्तित्व जागृत होता है। वो तुरंत सबकुछ बदलना चाहता है। दिमाग की गति को बढ़ा देता है और एक दबाव पैदा करता है कि हमे कुछ ऐसा मिल जाये कि तुरंत ही सब कुछ ठीक हो जाए।
दिमाग की गति बढ़ने से नए विचारो का प्रवाह रुक जाता है और हमारा धैर्य खत्म होने लगता है।
हम बदलाव को समझने की बजाय उसका प्रतिरोध शुरू कर देते है और परिणाम स्वरूप कुछ ऐसे फैसले ले लेते है जो हमारे लिए विनाशकारी साबित होते है।
यह सब इतनी तेजी से हो रहा होता है कि हम जान ही नहीं पाते की हम कर क्या रहे है और अब तक का हासिल किया बहुत कुछ हमसे छीन जाता है।
कैसे हम आत्म विनाशकारी गुण को रोक सकते है ?
किसी भी चीज़ को रोकने से पहले हमे यह पता होना चाहिए कि वो अस्तित्व में है। अपने बिज़नेस में भी मुझे कहीं बार अहसास हुआ कि हम ज्यादा के हक़दार है पर भूतकाल के अनुभव ने शायद मुझे इसको समझने की ताकत दी।
आपको लगता है कि आपके कस्टमर आपको समय पर पेमेंट नहीं कर रहे है। आपको अच्छा लाभ नहीं मिल रहा है। अब इससे आगे आप नहीं जा सकते। आपको तुरंत कोई फैसला लेने की जरूरत है जो स्थिति में सुधार करे।
हो सकता है कि मेरे बिज़नेस को बहुत बार सुधार की जरूरत थी और मैंने करने की कोशिश भी की। बहुत बार हम गलतियां करते है जिनकी वजह से हमे नुकसान हो रहा हो उनको बदलने की जरूरत होती है।
पर सुधार का प्रोसेस लॉन्ग टर्म स्ट्रेटेजी पर आधारित होना चाहिए न कि शार्ट टर्म स्ट्रेटेजी पर। अगर आप सुधार लम्बे समय के परिणाम पर सोच कर करेंगे तो हो सकता है कि आप हड़बड़ाहट में कोई कदम न रको। और आपके पास भविष्य के लिए कोई योजना मिल जाये।
आपको यह समझना होगा कि आप तुरंत कुछ नहीं बदल सकते। पर कुछ बदलने के लिए आपको शुरुआत आज ही करनी है पर उसे आज ही बदलने की कोशिश नहीं करनी है।
मेरे दिमाग में बिज़नेस से जुड़ा कुछ आता है तो मै अपने आप को एक तरह से छूटी पर भेजने की कोशिश करता हूँ। क्यूंकि कभी कभी कुछ न करना भी बहुत कुछ करने के बराबर होता है।
अपने ब्लॉग को ख़राब करने के बाद मुझे समझ आया कि यह मेरी सेल्फ डेसट्रक्टिव पावर थी। इसको मैंने बहुत व्यक्तियों की जिंदगी पर अप्लाई करके देखा और पाया कि जैसे ही हमारी सेल्फ डिस्ट्रक्टिव पावर हावी होती है वो हमे आउट ऑफ़ ट्रैक्ट कर देती है।
जिस रास्ते पर हम चल रहे होते है उससे हमे अलग कर देती है। जिससे हमारी ग्रोथ रुक जाती है और डाउन फॉल शुरू होता है। और कोई एक फैसला इस डाउन फॉल को गति दे देता है।
फिर चीज़े सही होने की बजाय ख़राब ही होती जाती है। और हम अपने आप को ऐसी स्थिति में पाते है जहाँ से निकलना असम्भव लगता है।
अपने ब्लॉग को खत्म करने के एक साल बाद मैंने दुबारा नया ब्लॉग शुरू करने के बारे में प्लान किया। और शुरू किया पर मै अब तक दोबारा उस स्तर तक नहीं पहुँच पाया जहाँ मै तब था।
अगर इस सेल्फ डिस्ट्रक्शन को रोकना है तो आपको एक बार रुक कर दुबारा सोचना होगा कि अब क्या किया जाये। और एक लॉन्ग टर्म प्लान पर काम करना है न कि तुरंत सुधार प्रक्रिया शुरू करनी है।
यह क्यों इतनी ख़राब है ?
हम अपने 99% काम आदतन करते है। और अगर आपमें सेल्फ डिस्ट्रक्टिव पॉवर आपकी आदत बनने लग जाएगी तो आप किसी भी काम को एक स्तर तक तो ले जा सकते हो पर उसके बाद आप आदतन कुछ ऐसे फैसले ले लोगे जो आपको ऊपर की बजाय निचे ले जाना शुरू कर देगी।
क्या सेल्फ डिस्ट्रक्टिव पावर अच्छी भी हो सकती है ?
सेल्फ डिस्ट्रक्टिव पावर असल में तत्काल सुधार का साइड इफ़ेक्ट भी हम कह सकते है। किसी भी चीज़ को ग्रोथ के लिए उस पर काम करना या ध्यान देना जरूरी होता है। हम लम्बे समय तक कुछ चीज़ो को टालते रहते है क्यूंकि हमे लगता है कि वो अच्छी चल रही है।
पर उसके अच्छे चलने का कारण उस पर भूतकाल में किया गया काम होता है। न कि वो आज अच्छी चल रही है।
एक समय बाद उसके परिणामो में कुछ गिरावट देखने को मिलती है। हम जागते है और हमे लगता है कि अब इसे तत्काल सुधार की जरूरत है और स्थिति में बदलाव लाकर हम इसे ठीक कर सकते है।
सुधार की आवश्यकता उसे है और वो भी अभी। पर अब हम चीज़ो को बदलने का समय नहीं देना चाहते। हम इंतज़ार नहीं करना चाहते और धैर्य नहीं रखते।
तो तत्काल सुधार की प्रक्रिया को हम तब तक बदलने की कोशिश करते रहते है जब तक हमे परिणाम नजर नहीं आ जाते। और परिणाम आने में समय लगता है। वो समय अब हम देना नहीं चाहते।
और किसी चीज़ पर अगर ज्यादा जोर लगाया जाये तो वो टूट जाती है और यही यहाँ हमारी व्यक्तिगत, समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यवसायिक जिंदगी में होता है।
हम चीज़ो को तत्काल बदलने में कुछ ज्यादा ही जोर लगाते है और वो टूट जाती है और अगर आप बहुत भाग्यशाली नहीं है तो वो कभी नहीं जुड़ती।
मै बहुत दिनों तक खाली रहना पसंद करता हूँ बजाय इसके कि मै ज्यादा जोर लगाओ चीज़ो को तत्काल बदलने में।
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