शक्ति के साथ जिम्मेदारियां भी आती है।

शक्ति के साथ जिम्मेदारियां भी आती है। 

चाहे जिंदगी हो या प्रोफेशनल लाइफ, यह नियम हर जगह लागु होता है। 

जिंदगी में जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है। हमारी शक्ति बढ़ती जाती है। हमे अपने फैसले करने की ताकत मिलती जाती है , हमारे पास पैसे कमाने के सोर्स भी आ जाते है। 

बचपन में हमे हर चीज़ अपने माता पिता से पूछ कर करनी पड़ती थी। अब हम अपनी जिंदगी के खुद मालिक होते है 

प्रोफेशनल लाइफ में भी ऐसा ही होता है। हम जब शुरुआत करते है तो हमारे पास सिमित ही विकल्प होते है। हमे केवल वह ही करना पड़ता है जो हमारे सीनियर हमे करने को कहते है या सिखाते है। 

फिर हमे प्रोफेशनल लाइफ में आगे बढ़ने लगते है। हमे प्रमोशन मिलने लगती है। हम सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ने लगते है। 

उसके साथ साथ हमारी शक्तियां भी बढ़ने लगती है। पहले हर फैसला हमे अपने से उप्पेर वालो से पूछ कर लेना पड़ता था पर अब हम कुछ फैसले खुद कर सकते है। अगर हम प्रोफेशनल लाइफ के सर्वोच्च पद पर हो तो 95 % से ज्यादा फैसले खुद ही लेने पड़ते है। 

मैंने पाया है कि शक्ति को सब पाना चाहते है पर जिम्मेदारियां कोई नहीं चाहता। 

हम भविष्य में सफल होंगे या असफल वो यहाँ से बदल जाता है। ताकत आते ही अगर आप पूरी जिम्मेवारियों को साथ लेकर चलते है तो आपकी जिंदगी कुछ और होती है और अगर ताकत आने के बाद आप केवल ताकत का उपयोग तो करते हो पर जिम्मेवारियों को पूरा नहीं करते तो कुछ और होती है। 

आप जिंदगी में आगे बढ़ते है तो आप पर अपने परिवार की, समाज की और अगर आप राजनीती या सेवा में जाते है तो देश की जिम्मेवारियां आती है। 

और प्रोफेशनल लाइफ में आप पर आगे बढ़ने के साथ साथ अपने संगठन और अपने से निचे काम कर रहे लोगो की जिम्मेवारियां आती है। 

अब यहाँ से मनुष्य को खुद तय करना होता है कि उसे ताकत के साथ जिम्मेवारियों को भी निभाना है या केवल ताकत का उपयोग करना है। 

प्रोफेशनल लाइफ में ताकत के साथ अपने से निचे काम कर रहे लोगो की जिम्मेवारियां आती है। पर हममे से ज्यादातर व्यक्ति केवल अपनी ताकत का ही उपयोग करते है। 

जिम्मेवारी होती है कि हम सब कामयाब हो। हम सब साथ मिल कर एक संयुक्त लक्ष्य को प्राप्त करे पर होता क्या है कि हम दिखाते तो संयुक्त लक्ष्य है। हम बताते तो है कि अगर यह हमने हाशिल कर लिया तो सबको लाभ होगा। पर ऐसा होता नहीं। 

लक्ष्य हासिल करने में हम अपनी जिम्मेवारी में कामयाब रहते है पर जब सबको लाभ देने की बात आती है तो हम केवल ताकत का उपयोग करते है और लाभ को केवल चंद ताकतवर लोगो के लिए रख लेते है। 

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बहुत बार हम ताकत को पाने का प्रयत्न करते है। उसको पा लेते है। यानि हम प्रोमशन लेकर नई पोजीशन पा लेते है। वहां पहुँच कर हमे लगता है कि अब हमे अपने से निचे वालो से काम लेना है अपनी ताकत के बल पर। 

पर यह तकनीक काम नहीं करती है। हम चिलाते रहते है। हम उनके साथ लड़ते रहते है। और हमारी प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है। ताकत का उपयोग कभी भी बेहतर समाधन नहीं होता। 

उस पोजीशन पर पहुँच कर अब उनके काम की जिम्मेवारी भी हम पर ही आ जाती है। वो क्या करते है उसका सीधा हमारे परिणामो पर असर पड़ता है। 

या तो हम गधो की तरह लगे रह कर उनके काम भी खुद करे या सब चीज़ो को मैनेज करके उनको भी काम करने के लिए प्रेरित करे। 

आप किसी से काम नहीं करा सकते। आप उनको जिम्मेवारी दे सकते है। जब आप किसी को जिम्मेवारी देते है तो वह उसे पूरा करने के लिए बाध्य हो जाते है क्यूंकि तब हम उसे अपना समझ कर करते है क्यूंकि ऐसा करने की जिम्मेवारी हमे मिली होती है। 

ताकत का उपयोग किसी को डराने धमकाने की बजाय चीज़ो को मैनेज (प्रबंधित) करने में ज्यादा ध्यान देना चाइये।

मेरा यहाँ मैनेज से मतलब आजकल के मैनेजरो की तरह नहीं कि डिटेल बनायीं और अपने से निचले कर्मचारियों को भेज दी बल्कि एक व्यवहारिक सिस्टम (प्रणाली) बनाकर। जिसको परेशानी हो वो आपसे कांटेक्ट कर सके और उसका हल पूछ सके। 

ऐसा न हो कि जब आप पूछो तभी वो कारण बताये कि ये इस वजह से नहीं हुआ बल्कि उस काम को करते हुए उसको जो परेशानी आये उसी वक़्त वो आपसे बात करे ताकि सिस्टम में बाधा उतपन्न न हो। 

ताकत का उपयोग हमेशा एक सिस्टम (प्रणाली ) बनाने और दुसरो तक उनकी जिम्मेवारियों को संवाद करने में लगाना चाहिए ताकि वो आपके सिस्टम से जुड़ा हुआ महसूस करे। 

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