पेमेंट मरने के रिस्क को कैसे कम करे ?
अगर आप बिज़नेस में हो तो अनिश्चिताये हमेशा आपका पीछा करती रहेगी। हमेशा ही आपको रिस्क और बोल्ड डिसिशन लेते रहना पड़ता है।
बिज़नेस में एक सबसे बड़ा रिस्क होता है - पेमेंट का रिस्क।
आपको अगर बिज़नेस में बने रहना है या जल्दी ग्रो करना है तो आपको क्रेडिट तो मार्किट में देना ही पड़ेगा। क्रेडिट देने का मतलब है कि अब अपने माल सामने वाली पार्टी को दे दिया। अब आप आर्डर के लिए भी फ़ोन करोगे और पेमेंट के लिए भी।
आपने अपने माल का मालिक अपने कस्टमर को बना दिया। अब उसके उप्पर है वो आपकी पेमेंट कैसे करता है। अगर आपका कस्टमर सही है तो कोई प्रॉब्लम नहीं है लेकिन अगर कस्टमर सही नहीं है या उसके साथ हालात सही नहीं है तो आपका माल तो आपके गोदाम से जा ही चूका होगा और साथ ही साथ आपका पैसा भी।
वो आपको अब मिलने की समभावना बहुत ही कम होगी।
बिज़नेस में पेमेंट मरना एक आम बात है। आप चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।
बैंकिंग सिस्टम कितना मजबूत होता है। लोग उनसे लोन लेकर वापिस नहीं करते चाहे वो कोर्ट तक चले जाये तब छोटे बिज़नेस की तो औकात ही कहाँ है।
आप इसे खत्म नहीं कर सकते पर आप इस रिस्क को कम से कम कर सकते हो।
इसे कम करने का तरीका है कि आपको अपने हर कस्टमर को दिए जा रहे क्रेडिट की एक लिमिट करनी पड़ेगी। एक अधिकतम राशि आपको तय करनी पड़ेगी जो आप किसी कस्टमर पर लगा सकते हो। उसकी सेल और पूरी पेमेंट कलेक्शन के बेस पर।
अगर आपका कस्टमर आपको 30 दिन में या 45 दिन में 7500 की पेमेंट देने की क्षमता रखता है तो आपको उसकी देय तिथि के हिसाब से उसकी क्रेडिट लिमिट को सिमित रखना होगा। अगर देय तिथि 90 दिन है तो 22500 रुपए अधिकतम या जो भी आपकी कैलकुलेशन वहां पर बैठती है। ऐसा नहीं है कि आप उस पर 50000 इन्वेस्ट कर दो। और छह महीने पेमेंट के लिए भटकते रहो।
यह लिमिट आपके रिस्क को कम से कम करता है कि अगर किसी स्तिथि में आपका कस्टमर पेमेंट देने से मना करता है या देरी करता है तो आपकी सारी पेमेंट एक जगह ना लगी हो और आप अपने बिज़नेस को सँभालने में कामयाब रहो।
रिस्क है तो इश्क है पर अगर रिस्क को न्यूनतम स्तर पर रखा जाये तो इश्क लम्बे समय तक चलता है। ज्यादा रिस्क में जल्दी पिटाई की समभावना रहती है।
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