मेरा बिज़नेस सफर और मेरा बिज़नेस मॉडल !

मेरा बिज़नेस मॉडल बिलकुल साधारण है। 

मै मार्केटिंग कम डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल पर काम करता हूँ। मार्केटिंग कम डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल को फार्मा में फ्रैंचाइज़ी नाम से भी जाना जाता है। इस मॉडल में काम करने का तरीका यह होता है कि आप एक कंपनी हो जो पुरे भारत में डिस्ट्रीब्यूटर्स ढूंढ रही है। हम प्रोडक्ट्स में डिस्ट्रीब्यूटर्स को ज्यादा मार्जिन देने की कोशिश करते है ताकि वो सेल्स के खर्चे आसानी से निकाल सके। 

इस मॉडल की ज्यादातर कंपनियां ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरीको से डिस्ट्रीब्यूटर्स ढूंढ़ने की कोशिश करते है।

पर मेरे काम करने का तरीका थोड़ा अलग है। मैंने अपनी जॉब के अंतिम कुछ वर्षो में और अपने स्टार्टअप में बहुत ही कम सेल्स कॉल की है। मेरे काम करने का तरीका है - ज्यादा से ज्यादा से लोगो तक खुद को पहुंचना और ज्यादा से ज्यादा लीड बिज़नेस के लिए प्राप्त करना ताकि हमारी सेल्स टीम का समय बच जाये और उनको केवल उनसे ही बात करनी पड़े जो पहले से ही हमारे साथ बिज़नेस करने में इंटरेस्टेड हो। और यह मेरे लिए बहुत सफल रहा। 

और मुझे कभी भी नए क्लाइंट ढूंढ़ने में कोई दिक्क्त नहीं हुए। हर महीने ठीक ठाक नए क्लाइंट हम जोड़ लेते है और पुराने क्लाइंट्स को अपने साथ रखते हुए। 

मेरा बिज़नेस मॉडल न तो यूनिक है और न ही नया। बस मै इसे अलग तरह से करता हूँ। मै केवल ऑनलाइन तरीको का उपयोग करता हूँ चाहे वो मुक्त के हो या पेड ! मै विश्वास पर आधारित काम करने की कोशिश करता हूँ और लोगो से कुछ चाहे बिना उनकी मद्द्त करने की कोशिश करता हूँ। 

मै जितनी हो सके उतना ऑथेंटिक रहने की कोशिश करता हूँ और अपने हिसाब से बिलकुल सही जानकारी देने की कोशिश करता हूँ। जानकारी वीडियो, ब्लॉग या ऑडिओ के रूप में हो सकती है। मेरा मानना है कि किसी भी रूप में हो आपकी जानकारी और आप लोगो तक पहुँचने चाहिए। 

यह सब कुछ मेरे द्वारा पढ़े गए आर्टिकल से शुरू होता है जिसमे यह लिखा था कि जब आप ब्लॉग्गिंग करते हो तो लोग आपको आपकी फील्ड का एक्सपर्ट समझना शुरू कर देते है और वो आपके साथ जुड़ना चाहते है। ब्लॉग्गिंग के बाद मैंने यूट्यूब चैनल शुरू किया। 

यह उस सिद्धांत पर भी काम करता है कि आज के समय में आप किसी को कुछ बेच नहीं सकते बल्कि लोग आपसे खरीदना पसंद करते है। तो मै केवल वहाँ दिखना चाहता हूँ जहाँ मेरे कस्टमर है। पर सीधे तौर पर उनसे कभी खरीदने का अनुरोध नहीं करता पर जिनको जरूरत होती है वो मेरे कस्टमर अवश्य बन जाते है। 

और इसी वजह से जॉब से निकलने के बाद मै अपने बिज़नेस को बहुत हद तक स्थापित कर पाया। 

इस तरीके से सेल करने के लिए सबसे पहले आपको क्या जानना चाहिए ?

सबसे पहले आपको यह पता होना चाहिए कि आपका कस्टमर कौन है और वह आपसे क्यों जुड़ना पसंद करेगा। और वो आपको कहाँ मिलेगा। फिर उसी के हिसाब से आपको अपने आप को प्रमोट करना है। 

यह आर्टिकल अब तक मेरे कस्टमर ढूंढ़ने के तरीके को ही बयान करता है। पर बिज़नेस में संघर्ष केवल कस्टमर ढूंढ़ने में ही नहीं है पर कस्टमर ढूंढ़ना किसी बिज़नेस को शुरूआती दौर में बड़ी राहत देता है। सेल्स किसी भी बिज़नेस में खून का काम करता है। 

अगर आपके पास सेल है तो आप प्रोडक्ट भी ढूंढ ही निकालोगे। 

2014 में एल्ज़ाक मात्र एक नाम था। जो मैंने मई-जून में ढूंढा था। पर इस विचार ने मुझे और मेरे सोचने के तरीके को बदल दिया। 

जब मुझे लगने लगा कि इस जॉब में मेरा कोई भविष्य नहीं है और कभी भी मेरा करियर खत्म हो सकता है तो मेरे पास दो विकल्प थे। 

पहला - कहीं और नौकरी की तलाश करूं। 

दूसरा - अपने बिज़नेस को शुरू करने का विचार करूं। 

बिज़नेस शुरू करने का विचार एक स्वप्न जैसा था क्यूंकि न मेरे पास पैसा था और न ही आर्थिक स्थिति मजबूत थी कि जॉब छोड़ कर बिज़नेस शुरू किया जाये। 

दूसरी जॉब ढूंढ़ना ज्यादा आसान था पर इतने साल यहाँ देने के बाद किसी दूसरी जगह जॉब नहीं करना चाहता था। और जो जॉब मुझे अपने एरिया में मिलती वो सैलरी ही बहुत कम ऑफर करते थे। 

वहां पर मै हारा हुआ इंसान था जिसके पास कोई रास्ता नहीं था। इतने साल एक कंपनी के लिए मेहनत करके फिर से नया शुरू करना बड़ा मुश्किल था। 

फिर मैंने निर्णय लिया कि करना तो खुद का काम ही है। जो होगा देखा जायेगा। एक बार कोशिश किये बिना हार नहीं मानता।

कहूं तो मुझे कुछ भी नहीं पता था कि बिज़नेस कैसे शुरू होता है। पर मै नाम ढूंढ़ने में लग गया। बहुत समय बाद जाकर एक नाम फाइनल किया। पहले मै इसे फ़ूड सप्लीमेंट कंपनी बनाना चाहता था। क्यूंकि आयुर्वेद में मुझे बिल्कुल भी अनुभव नहीं था। पर फ़ूड सप्लीमेंट की एक्सपायरी होती है 18 महीने। मुझे लगा कि प्रोडक्ट बनवाने के बाद जब तक पार्टी ढूंढूंगा तब तक तो ये एक्सपायर हो चुके होंगे। 

फार्मा में मै जाना नहीं चाहता था क्यूंकि फिर जिस कंपनी में मै काम करता था और मेरे हित आपस में टकरा जाते और कहीं न कहीं उन्हें लगता कि हमारी ही पार्टियों को कांटेक्ट कर रहा है। 

आयुर्वेदिक का मुझे कुछ समय पहले ही पता लगा था कि उसको सेल परचेस करने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती। 

फिर मैंने निर्णय लिया कि आयुर्वेदिक में जाऊंगा। पर डिस्ट्रीब्यूटर्स कहाँ से मिलेंगे पता नहीं था। कुछ पैसे बचा कर मैंने वेबसाइट बनवायी। अब नाम था और एक वेबसाइट। 

प्रोडक्ट के लिए पैसे नहीं थे तो मैंने उसके बारे में सोचना छोड़ दिया। बस मै यह सिखने लगा कि गूगल पर वेबसाइट को कैसे रैंक किया जाता है। क्यूंकि मुझे पता था कि गूगल ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा मै मुक्त में डिस्ट्रीब्यूटर्स तक पहुँच सकता हूँ। 

गूगल का एक रैंकिंग फैक्टर होता है - बैक लिंक्स। उसके लिए बहुत सारी गेस्ट ब्लॉग्गिंग साइट्स पर लिंक के लिए ब्लॉग लिखने लगा। फिर कहीं पढ़ा कि ब्लॉग लिखने की सबसे अच्छी जगह खुद का ब्लॉग तैयार करना है दुसरो की वेबसाइट पर ब्लॉग्गिंग कम ही करनी चाहिए। 

हर्बल में ब्लॉग लिखने लगा। पर वहां ज्ञान नहीं था तो कहीं से पढ़ कर, नॉलेज लेकर लिखने की कोशिश की पर न इंटरेस्ट बना और न ज्यादा लिख पाया। 

फिर कहीं से पता चला कि जो आपको अनुभव है उसके बारे में लिखना ज्यादा अच्छा रहता है और अपनी इंडस्ट्री के बारे में लिखने से लोग आपको एक्सपर्ट मानने लगते है। फिर मैंने फ्रैंचाइज़ी के बारे में लिखना शुरू किया और सीखता गया कि गूगल पर रैंकिंग के लिए क्या क्या करना चाहिए। 

इसीलिए अपने बहुत बार मुझसे सुना होगा कि जो आपको नॉलेज है उसको आप शेयर करो। वह भी आपका बिज़नेस बन सकता है। 

ब्लॉग से लिंक वेबसाइट पर भेजता रहा तो उसकी रैंकिंग में भी सुधार होना शुरू हुआ। इसी बीच मैंने coral सीखा। coral एक डिजाइनिंग सॉफ्टवेयर होता है जो फार्मा में बॉक्स/लेबल आदि के डिज़ाइन करने में उपयोग होता है। ताकि मै अपने डिज़ाइन खुद बना सकूं। 

कंपनी आस पास कहीं भी नहीं थी। नाम था और एक वेबसाइट !

फिर एक फ्रेंड ने एक आयुर्वेदिक मनुफैक्ट्रर से बात कराई और मैंने पैसे उधार लेकर तीन प्रोडक्ट बनवा लिए। प्रोडक्ट बनवाने से पहले तो सब ठीक ही था। असली दुनिया दारी तो प्रोडक्ट बनवाने के बाद शुरू हुई। मैंने इ-मेल मार्केटिंग, टेली मार्केटिंग, सोशल मीडिया सब का उपयोग किया पर तीन प्रोडक्ट में मेरे साथ कोई जुड़ने को ही तैयार न हो। 

फिर मैंने कंपनी को दोबारा उसके हाल पर छोड़ दिया और ब्लॉग्गिंग पर ध्यान देने लगा। मैंने पढ़ा कि ब्लॉग्गिंग से कैसे पैसे कमाए जा सकते है। मुझे पैसे कमाने का बहुत जनून हो गया था क्यूंकि पैसो के मामले में मै बहुत बुरे दिन देख चूका था। 

जैसे ब्लॉग्गिंग ने ठीक ठाक रैंक करना शुरू हुआ और कुछ रिफरेन्स से मैंने विसुअल-एड्स (visual-aids) के डिज़ाइन का काम लेना शुरू कर दिया। पैसे जहाँ से भी आ रहे थे क्या दिक्क्त थी। 

अब सबसे इंटरेस्टिंग बात। मेरे ब्लॉग का सबसे ज्यादा फायदा हुआ उस कंपनी को जिसमे मै काम करता था क्यूंकि ब्लॉग से दिन में 10 - 10 क्वेरी आने लगी और वो भी सब ओरिजिनल। पोर्टल से आने वाली ज्यादातर लीडस् फेक होती है।  

इससे फार्मा कंपनी का बिज़नेस भी बढ़ने लगा और वो भी फ्री में। 

फिर मुझे ब्लॉग्गिंग से भी पैसे आने लगे। अब जिंदगी मस्त थी। सैलरी, ब्लॉग से इनकम और सेल्स टारगेट आराम से पुरे हो जाते। अब अनबन फिर से बढ़ने लगी। कंपनी मेरी रिप्लेसमेंट ढूंढ़ने लगी तो मेरा ध्यान दोबारा अपने बिज़नेस की तरफ गया। 

फिर दिमाग लगाना शुरू किया। क्यूंकि लीडस् तो अब आने लगी थी पर मेरे पास प्रोडक्ट ही नहीं थे तो कैसे काम होता। तीन प्रोडक्ट से कोई जुड़ना चाहता नहीं था। फिर एक दिन में बगल की आयुर्वेदिक फैक्ट्री में किसी काम से गया। वहां मैंने क्लासिकल प्रोडक्ट्स देखे। 

मन में ख्याल आया कि इनमे तो सिर्फ logo ही बदलता है , नाम तो सभी कंपनियों का एक ही रहता है। मुझे क्लासिकल बेचने का अनुभव नहीं था और मुझे पता भी नहीं था कि ये इस मॉडल में बिक सकते भी है या नहीं। 

मैंने प्रोडक्ट नहीं बनवाये। केवल प्रोडक्ट लिस्ट तैयार की और वेबसाइट पर अपलोड कर दी। तीन प्रोडक्ट से प्रोडक्ट्स हो गए 60, बिना किसी इन्वेस्टमेंट के। मैंने आयुर्वेदिक वाले अंकल से बात कर ली कि कम से कम कितनी क्वांटिटी दे सकते हो। 

अब वेबसाइट को और प्रमोट करना था और इंतज़ार करना था कि कोई डिस्ट्रीब्यूटर जुड़े। वहाँ मैंने सीखा कि आपको कस्टमर मिल ही जाते है अगर आप उन तक पहुँचने में कामयाब रहो। 

फिर जॉब चली गयी। संघर्ष फिर से शुरू हो गया। सेल नाम मात्र की थी। जॉब ढूंढ़ने की कोशिश की तो कोई भी उतनी सैलरी देने को तैयार न हुए जितनी पहले मिल रही थी। घर वालो से इसी बात पर अनबन होने लगी कि जॉब ढूंढ ले। 

कहीं जाकर मैंने 6 महीने का समय माँगा। कि 6 महीने कोशिश करके देख लूँ अगर नहीं हुआ तो दोबारा जॉब में चला जाऊंगा। अगले तीन साल मैंने दिन रात मेहनत की। इस डर से की अगर असफल हो गया तो सब खत्म हो जायेगा। 

अब क्लासिकल में उतनी सेल तो नहीं हो पाती। मुझे समझ आने लगा था कि क्लासिकल में इतनी सेल जिससे खुद की सैलरी निकल जाये संभव नहीं है। पेटेंट/प्रोप्राइटरी प्रोडक्ट्स जरूरी है। एक वेंडर ने कहा कि 5 लाख का इंतज़ाम कर ले। ठीक ठाक प्रोडक्ट लांच हो जायेंगे। 5 लाख तो दूर 10000 इन्वेस्ट करने को नहीं थे। 

बस एक पोसिटिव पॉइंट था कि घर के खर्चे के लिए ब्लॉग से पैसे आ जाते थे। जिससे लड़ने का हौसला मिलता। कुछ थर्ड पार्टी और कुछ डिस्ट्रीब्यूशन से सेल आने लगी। मेरे साथ डबल दिक्क्त थी। मै था भी छोटा और मै उधार पर काम नहीं कर सकता था। इसीलिए मुझे पार्टियां भी वही चाहिए होती थी जो एडवांस पेमेंट दे। 

यहाँ पर मेरी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी काम आयी। जो कस्टमर आपके पास आता है वो आपको आपके हिसाब से पेमेंट करता है और जिस कस्टमर के पास आप जाते हो वह अपने हिसाब से पेमेंट करता है। 

जो भी काम होता उसका पेमेंट भी मै समय से करता चाहे मुझे कुछ बचता या न बचता। इससे वेंडर्स में विश्वास पैदा हुआ और वो मुझ पर पैसा लगाने की लिए तैयार हुए। तब मैंने पेटेंट/प्रोप्राइटरी प्रोडक्ट्स की रेंज बढ़ानी शुरू की। मै अपनी लिस्ट बहुत बड़ी करना चाहता था ताकि ज्यादा से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर्स को अपने साथ जोड़ सकूं। 

तो सर्किल घूमने लगा। 

मैंने इस सफर में बहुत कुछ सीखा। कुछ सफर ने सिखाया और कुछ सीख कर सफर को आसान बनाया। जॉब और खुद के बिज़नेस का संसार बहुत ही अलग होता है। मैंने वो दिन भी देखे की मेरे पास अपनी वाइफ की डिलीवरी के पैसे नहीं थे। डर की इंतियाँ देखी और मानसिक तौर पर मजबूत रहने का संघर्ष देखा। 

अच्छे लोग भी देखे और बेकार लोग भी। मैंने लोगो का बड़ी गहराई से अध्य्यन किया। खुद की दुसरो से तुलना होती देखी। वो दोस्त भी देखे जो संघर्ष में साथ थे और वो भी देखे जो मुंह फेर लेते थे। 

बहुत कुछ था सफर में। 

अगर मेरे सफर से कुछ ले जाना चाहते हो तो वो यह है कि - शुरुआत कर दो , सभी रास्ते खुद ही खुलने लग जायेंगे। 

जो सफर की शुरुआत करते है वे मंजिल भी पा ही लेते है , बस चलने का हौसला रखना जरूरी है। 



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