क्या आयुर्वेदिक मेडिसिन पद्धति अवैज्ञानिक है ?

क्या आयुर्वेदिक मेडिसिन पद्धति अवैज्ञानिक है ?

मै किसी तरह की बहस में कभी नहीं पड़ना चाहता। मुझे लगता है कि मै उन लोगो में से हूँ जो इस प्रश्न का जवाब देने के योग्य है।

मै एक फार्मासिस्ट हूँ। मैंने अपनी फार्मेसी की डिग्री (डिप्लोमा भी) एलोपैथिक मेडिसिन में किया है। और मैंने अपने करियर के शुरुआती सात साल एलोपैथी मेडिसिन की कंपनी में काम किया है और उसके बाद मैंने अपना आयुर्वेदिक स्टार्टअप शुरू किया था क्यूंकि इसको शुरू करना एलोपैथी मेडिसिन में स्टार्टअप शुरू करने से आसान था और आयुर्वेदिक मेडिसिन की मांग बढ़ने लग रही थी जबकि एलोपैथी में एक अच्छी मार्किट होने के साथ साथ बहुत ज्यादा प्रतियोगिता (कम्पटीशन) है और स्टार्टअप लागत बहुत ज्यादा है। मैंने दोनों इंडस्ट्री में काम किया है।

करोना के कारण एक बहस का जन्म हुआ कि आयुर्वेदिक अच्छा है या एलोपैथिक।

मेरे हिसाब से दोनों ही नहीं है। दोनों ही अपने आप में अपूर्ण है। दोनों में ही अभी बहुत कुछ कमियां है। अगर मै अपने अनुभव के आधार पर बताओ तो दोनों ही बिज़नेस है।

कम्पनियाँ (चाहे आयुर्वेदिक हो या एलोपैथिक ) केवल पैसे के लिए काम करती है। डॉक्टर केवल पैसे के लिए काम करते है। अस्पताल केवल और केवल पैसो से मतलब रखते है चाहे वह आयुर्वेदिक हो या एलोपैथिक। क्यूंकि यह केवल बिज़नेस है।

यह एक अलग मुद्दा है। यहाँ हम बात करने जा रहे है कि आयुर्वेदिक मेडिसिन पद्धति अवैज्ञानिक है या वैज्ञानिक ?

अगर सच कहूं तो यह बता पाना मुश्किल है कि आयुर्वेदिक मेडिसिन पद्धति वैज्ञानिक है या नहीं। यहाँ तक कि करोना मै तो हम सब ने देखा है कि एलोपैथिक डॉक्टरों ने भी तुको से ही काम लिया। हर चीज़ को प्रयोग करके देखा कि कुछ तो सही बैठ जाये। वो भी मजबूर थे क्यूंकि उनका ज्ञान और पद्धति भी वहाँ पर असफल थी।

मै यहाँ पर एलोपैथिक मेडिसिन को एक मानक मान कर चल रहा हूँ और उसके हिसाब से ही यह पता करने की कोशिश करूंगा कि जड़ी बूटियों से इलाज करना वैज्ञानिक है या नहीं जैसा कि आयुर्वेद में किया जाता है।

फार्मेसी के विधार्थियो को पता है कि हमे एक विषय पढ़ाया जाता है जो की केवल जड़ी बूटियों यानि हर्ब्स पर ही आधारित है। जिसका नाम है - फार्माकोग्नॉसी (pharmacognosy) ! अगर आप फार्मेसी से तालुक नहीं रखते तो आपके लिए बताना चाहता हूँ कि फार्माकोग्नॉसी एक ऐसा विषय जिसमे प्राकृतिक स्रोतों (जैसे पेड़ पौधे, जानवर या माइक्रोब्स आदि) से नई दवाओं की खोज, और  प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त दवाओं के भौतिक, रासायनिक, जैव रासायनिक और जैविक गुणों का अध्ययन आदि किया जाता है। 

और फार्माकोग्नॉसी में पाया जाता है कि पेड़ पोधो में औषधिये गुण होते है। और उनका मेडिसिन के तौर पर उपयोग किया जा सकता है। और ये पेड़ पौधे ज्यादातर वही है जिनका हम आयुर्वेद में उपयोग करते है। फार्माकोग्नॉसी वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करती है कि कि पेड़ पोधो में औषधिये गुण होते है

एक तरफ तो एलोपैथी ही यह प्रमाणित करती है कि पेड़ पोधो में मेडिसिनल गुण होते है और दूसरी तरफ एलोपैथी कहती है कि आयुर्वेदिक मेडिसिन अवैज्ञानिक है। 

ऐसा तो नहीं हो सकता कि जब किसी हर्ब को फार्माकोग्नॉसी में उपयोग किया जाता है तो उसके औषधिये गुण होंगे और जब उसी हर्ब का उपयोग आयुर्वेद में किया जायेगा तो औषधिये गुण नहीं होंगे। 

अब यह निर्णय तो मानने वाले पर निर्भर करता है कि वो क्या मानता है?

आयुर्वेदिक मेडिसिन वैज्ञानिक है या अवैज्ञानिक यह निर्णय भी हर उस व्यक्ति पर निर्भर करता है जो इसका उपयोग करता है। 

एलोपैथी और आयुर्वेदिक की बहस बेफजूल की है। दोनों का अपना ही वजूद है और इसको नाकारा नहीं जा सकता।  जो इसको लेकर झगड़ा कर रहे है वो असल में अपने अपने बिज़नेस को बचाने में लगे है। एलोपैथिक एसोसिएशन को लग रहा है कि  जिस तरह आयुर्वेदिक इंडस्ट्री बढ़ रही है तो उनकी हमीयत कम हो जाएगी। बाबा जी को लग रहा है कि अब उन्हें एक नया मौका मिला है एलोपैथी से आयुर्वेद को बड़ा बता कर अपनी सेल को बढ़ाने का। 

पर असल में एलोपैथी और आयुर्वेदिक दोनों अलग अलग है। दोनों का आपस में कोई मेल नहीं है। दोनों में ही अपने गुण और अवगुण है। दोनों ही मानवता की भलाई के लिए है। इसी लिए इस बहस को खत्म करके केवल दोनों के गुणों का भरपूर उपयोग करना चाहिए। 

चाहे कोई भी पद्धति काम कर रही हो पर हमे केवल मानवता का लाभ देखना है। 

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