महंगा और सस्ते से फर्क नहीं पड़ता।
कुछ बिज़नेस की या कुछ प्रोडक्ट्स का महत्व ही उसके ज्यादा रेट की वजह से होता है।
एप्पल की हम्मीयत इसलिए नहीं है कि वो दुनिया के सबसे अच्छे फ़ोन होते है। उनकी हम्मीयत इसलिए ज्यादा होती है क्यूंकि वो इतने महंगे होते है कि उन तक हर किसी की पहुँच नहीं होती और उसको रखना एक स्टेटस माना जाता है।
जिस दिन एप्पल ने अपने रेट कम कर दिए चाहे वो आज की तकनीक से कहीं गुना ज्यादा अच्छा प्रोडक्ट दे दे वो जहाँ आज है वहां स्टैंड नहीं करेगी। उसका अधिक प्राइस ही उसकी ताकत है।
कई व्यक्ति मुझसे पूछते है कि आपका प्रोडक्ट महंगा है या मेरा प्रोडक्ट मुझे महंगा पड़ रहा है और मार्किट में तो प्रोडक्ट बहुत ही सस्ते - सस्ते रेट पर मिल जाते है फिर हम कम्पटीशन कैसे करेंगे तो मै उनको यह ही बात समझाता हूँ कि मार्किट में हर तरह का प्रोडक्ट बिकता है। बिलकुल सस्ता भी , मध्यम स्तर का भी और बहुत अधिक रेट के भी।
मार्किट में हर चीज़ बिकती है और हर तरह का ग्राहक आपको मार्किट में मिल जायेगा। यह आप पर है कि आप अपने प्रोडक्ट को किस स्तर पर रखना चाहता हो। महंगा और सस्ते से फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है कि आप उसको पोजीशन कैसे करते हो।
अगर आपका प्रोडक्ट अच्छा है तो आपको रेट से जुड़े कम्पटीशन में जाने से अच्छा यह रहता है कि आप अपने प्रोडक्ट को आप उस प्राइस रेंज में स्थापित करने की कोशिश करे जहाँ आपको भी सही लाभ मिले और आपके कस्टमर को भी।
न आपके रेट बिना किसी कारण के ज्यादा ही ऊँचे हो और न ही आपको रेट्स इतने कम रखने चाहिए कि आपको लाभ कमाने और बिज़नेस का चलाने के लिए संघर्ष करना पड़े।
तो केवल कम्पटीशन के लिए या केवल प्रोडक्ट बेचने के लिए , प्रोडक्ट को किसी भी रेट में बेच देना बिज़नेस में लॉन्ग टर्म के लिए खतरनाक होता है। हो सके तो रेट फिक्स ही रखे। मोल भाव से बचने की कोशिश करे।
कस्टमर टु कस्टमर रेट में फर्क नहीं आना चाहिए , नहीं तो ग्राहकों के टूटने की ज्यादा सम्भवना रहती है।
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