जिंदगी एक अनंत खेल है
मेरे कभी कभी कल्पना करता हूँ कि अगर मुझे किसी स्कूल में बच्चो को सम्बोधन का मौका मिले और वहां मेरा लड़का भी हो तो मै बच्चो को ऐसा क्या कहना चाहूंगा जो उन्हें जिंदगी में असीम सफलता हासिल करने के लिए सशक्त बनाये।
मै काफी समय से साइमन सिनेक के वीडियो देख रहा हूँ और मुझे उनका finite गेम और infinite गेम का कांसेप्ट काफी अच्छा लगा और मुझे लगता है कि आज की जनरेशन के लिए मेरे लड़के समेत सबको यह कांसेप्ट जानना बहुत जरूरी है।
जब भी आपके पास एक से ज्यादा प्रतियोगी होते है तो आप गेम में होते है। यह गेम बिज़नेस भी हो सकता है , क्लासरूम भी हो सकता है , प्ले ग्राउंड भी हो सकता है, युद्ध का मैदान भी हो सकता है। मेरे हिसाब से यह कांसेप्ट हर जगह लागु होता है। वह गेम finite भी हो सकती है और infinite भी।
हमे पूरी जिंदगी प्रतियोगिता करना ही सिखाया जाता है। हम क्लास में भी एक दूसरे से प्रतियोगिता करते है। फर्स्ट आने के लिए, ज्यादा नंबर पाने के लिए, ज्यादा तारीफ पाने के लिए। और समय के साथ साथ यह प्रतियोगिता, यह गेम बढ़ती ही जाती है।
और हम इसे खेलते जाते है बिना यह जाने या ढूंढ़ने के की कोशिश किये बिना कि क्या इससे हमे कुछ हासिल होगा।
मै आप सबसे पूछता हूँ कि क्या फर्स्ट ग्रेड में , सेकंड ग्रेड में , या फिर 10th में या 12th में फर्स्ट पोजीशन आने से आप सफलता की सीढ़िया चढ़ना शुरू कर देंगे। क्या अच्छे मन पसंद कॉलेज में एडमिशन होने से आप यह तय कर पाएंगे कि आप यह प्रतियोगिता आप जीत गए या जीत जायेंगे।
हो सकता है कि बच्चा अपने स्कूल में फर्स्ट आ जाये पर उसका कम्पटीशन क्या भविष्य में इन्ही बच्चो के साथ होगा। दूसरे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी तो कम्पटीशन है। हर रोज कम्पटीशन बढ़ता ही जायेगा। इसका कोई अंत नहीं है।
बच्चो के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं होगा। पर उनके माँ बाप के पास इस प्रश्न का उत्तर है।
क्या उनको कभी लगा है कि उनकी क्लास में कोई लड़का या लड़की कभी पढ़ती थी और वो ज्यादा इंटेलीजेंट नहीं थी, स्मार्ट नहीं थी, फिर भी वो उनसे ज्यादा सफल है।
क्यों ?
क्या अपने कभी सोचा है कि एक एंट्रेंस एग्जाम में असफल होने पर स्टूडेंट सुसाइड करने के लिए क्यों उकसाहित हो जाते है ?
एक असफलता क्या हमारी पूरी जिंदगी तय कर सकती है ?
क्या केवल इसलिए की मै डॉक्टर नहीं बन पाउँगा तो क्या मै कभी डॉक्टर से ज्यादा सफल नहीं हो पाउँगा। मै अगर इंजीनियर नहीं बन पाउँगा तो क्या मै कभी उससे ज्यादा पैसा नहीं कमा पाउँगा।
हो सकता है कि आप डॉक्टर न बन पाओ पर आप एक कॉर्पोरेट हॉस्पिटल के मालिक बन जाओ जहाँ आपके निचे कई डॉक्टर काम करते है। अगर आप डॉक्टर बन जाते तो शायद वह नहीं कर पाते।
फिर भी क्यों?
क्यूंकि हम गेम/खेल/प्रतियोगिता के सिद्वांतो के बारे में न जानते है और न अपने बच्चो को वो सीखा पाते है क्यूंकि हमारे बच्चे हमे देख कर ही बड़े हुए है और उन्होंने जैसे हमे देखा है वैसे ही उन्होंने सीखा है।
finite (सीमित) गेम में क्या होता है ? आपके पास एक से ज्यादा प्रतियोगी है और आपको अपने प्रतियोगी के बारे में पता है। उस खेल के नियम तय है और एक निश्चित लक्ष्य है यानि कि क्रिकेट की तरह जिस प्रतियोगी के आखिर में सबसे ज्यादा रन वह जीत जायेगा। वहां सब कुछ नियमो के अनुसार होता है और हम उनको मानते है।
infinite (अनंत) गेम में क्या होता है ? अनंत गेम में आपके पास जानकर या न जानकर प्रतियोगी होते है। उसके कोई नियम नहीं होते। कोई भी प्रतियोगी कभी भी गेम में आ सकता है और कभी भी गेम को छोड़ सकता है। इसमें कोई लक्ष्य नहीं होता वो समय के साथ साथ बदलता रहता है ताकि गेम कभी खत्म न हो।
अगर मै इसको बिज़नेस के रूप में कहूं तो कभी भी कोई कॉम्पिटिटर मार्किट में एंटर कर सकता है , कोई भी कंपनी कभी भी बर्बाद होकर मार्किट को छोड़ जाती है। आज किसी का ज्यादा प्रोडक्ट बिकता है , कल किसी और का बिकना शुरू हो जायेगा।
कभी मार्किट में केवल नोकिया के बिकते थे। आज किसी और कंपनी का फ़ोन ज्यादा बिकता है। आज माजूद किसी भी कंपनी के अस्तित्व में आने से पहले से बिज़नेस चल रहा है और चलता ही रहेगा। वह एक अनंत गेम है।
आज माजूद किसी भी स्कूल के होने से पहले से ही शिक्षा चल रही है और आज के एजुकेशन सिस्टम के खत्म होने के बाद भी शिक्षा रहेगी।
अगर मै लाइफ की बात करूं तो लाइफ भी एक infinite गेम है। पढ़ाई इसी अनंत खेल का एक हिस्सा है। पर हम इसे finite (सीमित)खेल की तरह खेलते है।
हमे लगता है कि अगर मै फर्स्ट नहीं आ पाया तो मै हार जाऊंगा। मैंने यह नहीं किया तो मै पीछे रह जाऊंगा। माँ बाप भी बच्चो को यही सीखते है कि अगर तू फर्स्ट नहीं आया तो तू कभी कामयाब नहीं होगा।
और बचपन से सुनी हुए बाते उनके मन में बैठ जाती है और एक छोटी सी असफलता (जो वास्तव में असफलता नहीं होती मात्र एक बाधा ही होती है) आती है और वो समझ बैठते है कि वो सबसे पीछे रह गए और वो हार गए।
जबकि इस खेल में कोई भी विजेता या हारने वाला नहीं होता। यह अनंत खेल है। यहाँ किसी से हमारा कोई कम्पटीशन नहीं है। यहाँ हमारा केवल खुद से कम्पटीशन है।
हमे हर रोज खुद से ज्यादा better बनने की कोशिश करनी चाहिए न कि अपने सहपाठी से। आज हमे जितना ज्ञान है उससे ज्यादा कल हमे होना चाहिए। आज हमे एक सब्जेक्ट अच्छा आता है तो दूसरे सब्जेक्ट में भी आपको अच्छा बनने की कोशिश करनी चाहिए।
आज हो सकता है कि कोई बच्चा पढ़ाई में कमजोर हो पर आज से कुछ साल बाद जब उसको कोई छुपा टैलेंट बाहर आये तो वो सबको पीछे छोड़ दे। कोई एक क्षेत्र में अच्छा होता है और कोई किसी और में।
आपको यह मान कर चलना होगा कि कभी आपको ज्यादा नॉलेज होगी कभी किसी और को। कम्पटीशन में किसी से नफरत करने से अच्छा है कि इस अनंत खेल को सहयोग से खेला जाये और एक दूसरे की जीतने में मद्द्त की जाये।
यहाँ किसी को गिरा कर आप नहीं जीत सकते क्यूंकि इसमें जीत और हार तो तय होती ही नहीं है। यह तो अनंत तक चलने वाला खेल है। एक हार कई जीत के रास्ते खोल देती है।
हम दुसरो को गिराने की कोशिश करते है क्यूंकि हमे लगता है कि हम जीत जायेंगे। पर जब जीत का कोई माप ही नहीं है तो आप कैसे कहेंगे की आप जीत गए।
आप स्कूल में टॉप कर गए पर दूसरे स्कूलों में जो कम्पटीशन आ रहा है उसका क्या। आप बोर्ड टॉप कर गए पर कॉलेज में जो कम्पटीशन आ रहा उसका क्या ? आप यूनिवर्सिटी टॉप कर गए पर जो जॉब में कम्पटीशन आ रहा उसका क्या ?
आपको अच्छी जॉब मिल गयी पर जो कम्पटीशन इस बात से आएगा कि आपके किसी सहपाठी ने खुद की कंपनी शुरू कर ली उसका क्या ?
चलो मान लो आपने भी कंपनी शुरू कर ली तो दूसरी establish कंपनियों से जो कम्पटीशन आ रहा उसका क्या ?
यह तो अनंत है। यह खेल अनंत है इसीलिए यह infinite गेम है। यहाँ किसी भी स्तर पर कोई नियम नहीं है। लोग उससे सस्ते प्रोडक्ट बेच रहे होंगे कि आपकी कॉस्ट भी नहीं पड़ती होगी।
तो अंत में क्या ?
निराशा, चिढ़, पराजय, मायूसी, गुस्सा और पूरी गेम को दोष देना।
पर हमारी हार का कारण गेम यानि ये खेल नहीं है। हम है !
हमे पता ही नहीं कि हम खेल क्या रहे है ?
हम अपने सामने वाले को हारने के लिए उससे आगे निकलने के लिए उससे जीतने के लिए यह खेल खेल रहे है जबकि यह तो अनंत खेल है। इसमें हार और जीत तो है ही नहीं।
आप कभी भी जीत नहीं पाओगे। इसमें जीत के मापदंड नहीं है। जितना जीतने की कोशिश करोगे उतना ही निराशा हाथ लगेगी। क्यूंकि कभी भी कोई आपसे स्मार्ट, तेज और ज्यादा समझदार व्यक्ति आपसे आगे निकल जायेगा।
99% डिप्रेशन का कारण आज की जनरेशन में या मेरी जनरेशन में यही है। हमे खेल के नियम ही नहीं पता। हमे यह ही नहीं पता कि हम खेल कौन सा खेल रहे है।
हम सबकुछ finite गेम की तरह करते है और है यह infinite गेम।
infinite गेम (अनंत खेल) में आप कभी भी कम्पटीशन से नहीं जीत सकते। यहाँ तक कि आप जीत ही नहीं सकते क्यूंकि इसमें जीत या हार है ही नहीं।
आप खुश और सफल हो सकते हो और वो भी किसी दूसरे को गिराए बिना। एक दूसरे का सहयोग करके। एक दूसरे की जीतने में मद्द्त करके। एक दूसरे को कामयाब करके।
हो सकता है कि किसी गिरते हुए को उठाते हुए आप भी सँभल जाओ या जब आप गिरने लगे तो वो आपके गिरने से बचाने के लिए आ जाये।
पर किसी की मद्द्त बिना return में कुछ चाहे बिना करनी है। आपको दुसरो की मद्द्त करके भूल जाना है। हो सकता है कि कोई आपकी मद्द्त न करे पर जहाँ तक हो सके आपको दुसरो की मद्द्त करनी चाहिए बिना कुछ चाहे बिना।
बिना लाभ के की गयी मद्द्त से एक दूसरे में विश्वास बढ़ता है जो कि सामूहिक सफलता की और ले जाता है। सामूहिक सफलता खुशहाली लाती है। और संतुष्टि दिलाती है।
कभी इस नजरिये से दुनिया को देखने की कोशिश कीजिये। आप किसी की मद्द्त करके देखिये। आपको जिंदगी में एक सुख की प्राप्ति होगी। आप जानेगे कि दुसरो को सहारा दे कर भी सफल हुआ जा सकता है।
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