फाइनेंस मैनेज करने के पांच तरिके - अपने बिज़नेस को मजबूती देने के तरिके !!!!


फाइनेंस किसी भी बिज़नेस में बड़ा इंपॉर्टेंट रखता है और इसी वजह से जो फाइनेंसियल मैनेजमेंट है वह किसी भी बिजनस की रीढ़ की हड्डी का काम करता है 

हाय गाइस मै हूँ अजय  कंबोज और आज मैं बात करूंगा पांच ऐसी टिप्स के बारे में जिन का उपयोग आप अपने फाइनेंस को मैनेज करने के लिए कर सकते हो और अपने बिजनेस को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कर सकते हो 

Credit Limit (क्रेडिट लिमिट)

जो पहली टिप है वह है क्रेडिट लिमिट। 

क्या होता है कि हमें मार्केट में पैसा लगाना पड़ता है और हमें अपने वेंडर से भी एक लेवल के बाद पैसा मिलना शुरू हो जाता है, एक तरह से वह हमारी इन्वेस्टमेंट हो जाती है, हम बैंक से भी इंवेस्टमेंट ले सकते हैं, बैंक से भी लोन होते हैं हमारे पास। 

लेकिन हमारे पास दोनों ही चीज़ो की लिमिट होनी चाहिए, हम मार्किट में कितना पैसा लगा रहे हैं उसकी भी लिमिट होनी चाहिए। हर पार्टी वाइज आपके पास लिमिट होनी चाहिए। 

आप लिमिट तय कर सकते हो कि वह कितना माल लेता है, कितनी पेमेंट की उसकी कैपेसिटी है क्योंकि जब आप काम करना उसके साथ शुरू करोगे तो आप जान जाओगे कि वह मंथली बेसिस पर, वीकली बेसिस पर कितनी पेमेंट आपको कर सकता है। 

कितनी उसकी सेल है, कितनी उसकी कैपेसिटी है, मटेरियल तो कितना भी मंगवा सकता है लेकिन जैसे ही वह पेमेंट करेगा तो आपको पता लग जाता है कि वह कितनी पेमेंट की वर्थ रखता है तो उसी हिसाब से हर पार्टी की आपकी लिमिट होनी चाहिए। 

किसी एक पार्टी पर आपका ज्यादा पैसा नहीं लगा होना चाहिए क्योंकि यह चीज मैंने बहुत फेस की है। 

थोड़ा टाइम के बाद बिजनेस में जब मै फुल टाइम आया था तो मेरे साथ भी यह  प्रॉब्लम काफी आई कुछ पार्टियों को स्टार्टिंग में एडवांस पेमेंट के साथ थोड़ा क्रेडिट देना पड़ा तो उस वक़्त मेरे को इतनी समझ नहीं थी तो कुछ पार्टियों को मैंने अनावश्यक उन पर ज्यादा पैसा लगा दिया। जितनी वह वर्थ नहीं करते थे। 

उनका आर्डर आया मैंने उनका माल भेज दिया, पेमेंट आएगी फिर थोड़ा ज्यादा आर्डर आया तो इस तरह से करके थोड़ा ज्यादा पैसा लग गया। 

लेकिन फिर क्या हुआ थोड़े टाइम बाद महसूस हुआ कि उनपर ज्यादा पैसा लग गया उनकी पेमेंट इतनी अच्छी तरह नहीं है, इतनी फाइनेंशली वह स्ट्रांग नहीं है या उनकी इतना अच्छा पेमेंट देने कि capability नहीं है या उनकी इच्छा नहीं है तो वहां पर मेरे को काफी स्ट्रगल करना पड़ा। 

क्योंकि उनकी वजह से क्या हुआ कि मेरे को फाइनेंस प्रॉब्लम आनी शुरू हुई तो जो अच्छी पार्टी थी जो रेगुलर बेसिस पर मटेरियल ले रही थी जिनको रेगुलर में सप्लाई कर रहा था रेगुलर उनकी पेमेंट आ रही थी तो उनके लिए मेरे पास स्टॉक खत्म होना शुरू हो गया है, नए प्रोडक्ट अगर वो मांग रहे थे तो उनके लिए मेरे पास पैसा नहीं बचा क्योंकि मेरा पैसा अनावश्यक रूप से दूसरी पार्टियों पर लग गया था जो वर्थ नहीं रखती थी। 

तो यह प्रॉब्लम आपके साथ भी आ सकती हैं तो जो फाइनेंस मैनेज करने का जो पहला टिप है, जो आपके debitor है जिनको आप माल दे रहे हो, क्रेडिट में दे रहे हो तो उनकी एक लिमिट बांधकर चलनी है, किसी पर भी अनावश्यक ज्यादा पैसा नहीं लगाना है। नहीं तो कहीं ना कहीं वह आपको प्रॉब्लम देगा। 

यहां पर अगर हम क्रेडिटर की बात करते हैं जो हमारे वेंडर होते हैं जिनका पैसा हमारे ऊपर लगा होता है या बैंक से लोन लेकर काम शुरू करते हैं तो उसमें क्या होता है कि आपको एक लिमिट बांधकर चलनी है ऐसा नहीं है की हम अनावश्यक पैसा उठाते रहे, मार्केट से भी अनावश्यक रूप से पैसा उठाते रहे और बैंक से भी अनावश्यक लोन लेते रहे। 

और मार्केट में आप ज्यादा पैसा फसा रहे हो या अनावश्यक प्रोडक्ट लांच कर रहे हो तो आपकी एक लिमिट होनी चाहिए यहाँ पर। 

तो जब आप अपने वेंडर्स की लिमिट बांध कर चलोगे कि आपको इससे ज्यादा उनका बैलेंस नहीं रखना है। इतने समय में आप उनको पेमेंट कर देनी है तो कहीं न कहीं आप मार्किट में भी जो debitor है आपके उनकी भी लिमिट पर टाइट रहोगे, उनसे भी पेमेंट कलेक्शन के मामले में  टाइट रहोगे। 

जैसे कि आपको लगेगा कि बैलेंस ज्यादा आ रही है तो आप अपने स्टॉक को भी मैनेज करने में थोड़ा सा सतर्क रहोगे तो बहुत सारी चीजें होती। 

यह मेरे साथ भी हुआ था, असल में क्या हुआ कि हम बड़ी जल्दी जल्दी प्रोडक्ट लांच कर रहे थे, बड़ी जल्दी जल्दी ग्रो कर रहे थे और हम अपने स्टॉक को काफी बड़ा ले जाना चाहते थे तो क्या हुआ कि हमारे वेंडर्स का जो क्रेडिट है वहां पर बढ़ता जा रहा था एक लेवल पर आकर हमने देखा कि यह काफी हद तक बहुत ऊपर पहुंच चुका है। 

क्योंकि हम सेल भी कर रहे है, प्रॉफिट भी ले रहे हैं, पैसा भी ठीक-ठाक आ रहा है फिर भी और हम बिजनेस से ज्यादा पैसा निकाल भी नहीं रहे हैं केवल अपने काम चलाने के लिए निकल रहे है फिर भी वेंडर्स का पैसा बढ़ रहा है तो वह हमारे लिए, हमें महसूस हुआ कि वह गलत साइन है हमारे लिए। 

और उसको कहीं ना कहीं हमें कंट्रोल करना चाहिए। फिर हमने एक टारगेट बनाया कि हमने एक निश्चित समय के हिसाब से इस बैलेंस को इतना ले जाना है और फिर से बैलेंस को  इतना ले जाना है, जितना हमारा मंथली सेल है। उसके आसपास ही हमें अपने वेंडर्स का पैसा रखना है बाकि का हम सारा का सारा पैसा कोशिश करेंगे कि उनका बैलेंस उसी रीच में ले आये, जितनी हमारी मंथली सेल है। 

तो आपको भी एक टारगेट बनाकर चलना है क्यूंकि कहीं न कहीं जब मार्किट से पैसा नहीं आएगा और जब वेंडर आपको पेमेंट का दबाव करेंगे तो कहीं ना कहीं आप दिमागी तौर पर वहां पर दबाव में आना शुरू हो जाओगे तो फिर कहीं ना कहीं वह आपके मार्केटिंग हैंड को या आपके सेल्स हैंड को कहीं न कहीं दबाव में लाएगा कहीं ना कहीं आपकी स्टॉक को फिर वह pressurize करेगा। 

अपने मार्किट से ज्यादा पैसा उठा लिया और एकदम से आपको अनएक्सपेक्टेड कहीं से बड़ा ऑर्डर मिल गया आपको तो मार्किट में उसको पूरा करने के लिए आपको एक साथ पैसा चाहिए फिर या तो बैंक के पास जाओगे या किसी नए वेंडर के पास  जाओगे तो वह कहीं न कहीं आपके बिजनेस की स्टेबिलिटी के लिए अच्छा नहीं होता। 

तो आपको एक लिमिट लगा कर चलनी है क्योंकि कभी आपके पास एक दम  आपको बड़ा आर्डर आये बड़ी ग्रोथ का आपको मौका मिले तो आपके पास आपका वेंडर आप पर और पैसा उस वक़्त लगाने के लिए तैयार हो एकदम आपके पास पैसा लगे फिर आप उसको पूरा करके उसी लिमिट में दोबारा ला सकते हो 

Payout Limit (पेआउट लिमिट)

दूसरी टिप्स के बारे में अगर बात करते हैं। वह है - पेआउट लिमिट। 

आपकी एक लिमिट होनी चाहिए, प्रोपराइटर हो, अगर आप कंपनी के तौर पर काम कर रहे हो तो वहां पर तो सब डायरेक्टर ही होते हैं उनकी सैलरी फिक्स होती है। 

अगर आप पार्टनरशिप में हो तब भी आप प्रॉफिट को बाँट ही रहे हो लेकिन चाहिए आप प्रोपराइटर  भी हो फिर भी आपको अपनी सैलरी के हिसाब से ही निकलना चाहिए। 

आपको मिनिमम एक लिमिट तय करनी है कि आपको बिजनस से इतना ही मैक्सिमम पैसा आप महीने में निकाल सकते हो चाहे, आपके पास कितनी पेमेंट्स आ रही हूं आपका प्रॉफिट मार्जिन कितना हों लेकिन एक लिमिट होनी चाहिए निकालने की। 

ऐसा नहीं है कि आपको गाड़ी लेनी है या आपको प्रॉपर्टी लेनी है या कुछ और, उसकी वजह से आप एक बहुत बड़ा हिस्सा बिजनेस से निकाल लो और ऐसा न हो कि अगले महीने सीजन डाउन हो जाये या कोई भी चीज हो सकती है क्योंकि मैंने बात करी है मैंने बहुत बार की unexpected journey होती। 

आपको नहीं पता होता कि अगला स्टेप क्या होगा, क्या आगे आने वाला है तो आपको कैलकुलेशन के साथ यहाँ पर चलना है। 

तो आपको जो पेआउट है, आपका जो पैसा बाहर निकाल रहे हो बिजनेस से, उसकी एक लिमिट होनी चाहिए। आपकी सेल के हिसाब से, आपके प्रोफिट के हिसाब से, एक मार्जिन, एक परसेंटेज, आपको वहां पर तय करके चलनी है कि आपको इतना ही पैसा बाहर निकलना है। 

चाहे वह सैलरी के तौर पर लो, चाहे आप किसी भी तरीके से उसको लो।  

Re-Investment (री-इन्वेस्टमेंट)

तीसरे नंबर पर बात करते है re-investment की। 

क्या होता है कि जो प्रॉफिट आप कमा रहे हो फिर आपको उसको re-investment करना भी आना चाहिए। 

अगर आपका प्रॉफिट मार्जिन ज्यादा है और आपको लगता है कि अब आपको बिजनेस में थोड़ा रुक के कहीं और जगह इन्वेस्ट करना है तो वह भी आप कर सकते हो लेकिन एक लिमिट के हिसाब से और यह आपको अपने नए एरिया में किसी में जाना है, किसी नए एरिया को लांच करना है। 

अगर आप मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हो तो आपको नयी मशीने लेनी है एक नए dosage form की मशीन लेनी है या आपको रॉ मटीरियल में वह दोबारा इनवेस्ट करना है या अगर आप मार्केटिंग कंपनी हो तो आपको स्टॉक में इनवेस्ट करना है और स्टॉक अपने पास बढ़ाना है या नए प्रोडक्ट को लांच करना है। 

डिस्ट्रीब्यूटर हो तो एक नई territory में भी आपको एंटर करना है तो कहीं ना कहीं भी आप जिस भी किसी नए स्टेप में जाओगे तो आपको पैसा वहां पर इन्वेस्ट करना पड़ेगा। 

जो अपनी प्रॉफिट कमाया तो उसको कितनी अच्छी तरह आपको re-investment करना आएगा। जितनी अच्छी तरह आप उसको re-investment करोगे उतना ही आपके बिजनेस के ग्रोथ के चांसेस यहां पर बढ़ते रहेंगे। 

Diversify your Money (डिवेर्सिफी योर मनी)

चार नंबर पर बात करते हैं diversify your money के बारे में। 

diversify मनी से मेरा यहां पर मतलब है कि आपको अपने सारे अंडे एक की बास्केट में नहीं रखने हैं। आपको अपना सारा पेमेंट एक ही पार्टी पर नहीं लगाना है। 

आपको अपने नंबर ऑफ कस्टमर को हमेशा बढ़ाने की कोशिश करनी है और जितना हो सके थोड़ी-थोड़ी पेमेंट्स आपको जितने भी अगर आपको देखो क्रेडिट आपको मार्किट में देना अगर मजबूरी है तो थोड़ी थोड़ी पेमेंट आप को नंबर ऑफ कस्टमर पर ज्यादा लगानी है बजाय इसके कि आप सारी पेमेंट एक ही कस्टमर पर लगा दो। 

अगर suppose करो आपको एक लाख रुपए का आपको क्रेडिट मार्केट में लगा हुआ है तो वो 1 लाख का एक पार्टी पर नहीं लगा होना चाहिए, दो पार्टी पर नहीं लगा होना चाहिए। 

तो वह सके तो दस पार्टी पर लगा होना चाहिए, बीस पार्टी पर लगा होना चाहिए ताकि यह हो की एक पार्टी के साथ कोई प्रॉब्लम आ जाये या थोड़ा उसका टाइट हो जाए, उसका फाइनेंसियल सिचुएशन या वह अपनी इनवेस्टमेंट में कोई गलती कर दे तो ऐसा ना हो कि आपको भी उसकी गलती मुहवजा यहाँ पर भुगतना पड़े। 

उसकी पेमेंट अगर थोड़ी सी लेट हो जाए तो आपकी दूसरे जगह से पेमेंट्स आ रही हो तो आप थोड़ा टाइट जरूर होंगे लेकिन फिर भी उसमें यह रहेगा कि आप इतने ज्यादा टाइट नहीं होंगे कि आप अपनी वेंडरों की पेमेंट टाइम से ना करो। 

तो आपकी पेमेंट्स वहां पर फिर सही सलामत होती रहेंगी। 

मैंने यह चीज बहुत देखी है कि आप अगर अपने फण्ड को अगर अच्छी तरह मैनेज कर रहे हो। क्योंकि बिजनेस एक चैन की तरह काम करता है - एक रॉ मटेरियल सप्लायर, मैन्युफैक्चरर, डिस्ट्रीब्यूटर  या बीच में मार्केटिंग कंपनी है तो वह भी और रिटेलर। 

चेन में उप्पर से लेकर नीचे तक एक क्रेडिट आ रहा है लेकिन अगर किसी की भी financial समझ किसी को नहीं है और उसने अपनी financial जो इनवेस्टमेंट है वह गलत तरीके से करी तो कहीं न कहीं पूरे बिजनेस में पूरे चैन में कहीं ना कहीं फर्क पड़ जाता है। 

तो ऐसा नहीं है कि किसी और की गलती, किसी और की financial गलतियों की वजह से आपको उसका मुआवजा भुगतना पड़े, आपको बिजनेस में वहां लॉस खाना पड़े। 

तो आपको अपनी मनी है जो आपकी इनवेस्टमेंट है जो आपका पैसा है, उसको डायवर्सिफाई करके चलना है। 

Stock Management (स्टॉक मैनेजमेंट) 

पांच नंबर पर बात करते हैं स्टॉक मैनेजमेंट के बारे में। 

किसी भी बिजनस की स्ट्रैंथ उसका स्टॉक होती है अगर आप मैन्युफैक्चरिंग है तो आपके पास पैकेजिंग मटीरियल, आपके पास रॉ मटेरियल और अगर थोड़ा डीपली जाते हैं तो आपकी मशीने, आपकी मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी कितनी है। 

मार्केटिंग कंपनी या डिस्ट्रीब्यूशन की बात करते हैं तो आपके पास स्टॉक कितना अवेलेबल रहता है। तो बहुत सारी चीज़े होती है, मैनली आपका स्टॉक आपका पैसा होता है क्या होता है कि आपके पास पैसा पड़ा है, किसी का आर्डर आया तो आपने उसको भेज दिया तो वह साथ के साथ ही आपका पैसे में कन्वर्ट हो गया,  Liquidate हो गया। 

तो आपको कोशिश करनी है कि आपके पास कोई आइटम शार्ट ना हो, दूसरा अब किसी का अतरिक्त स्टॉक न हो सारी आइटम्स इस हिसाब से रखो कि दो महीने या तीन महीने के अंदर वो  सर्कुलेट होने चाहिए। 

क्यूंकि उससे ज्यादा वहां पर आपका पैसा लगा हुआ है तो कहीं ना कहीं वह आपको फाइनेंसियल टाइट वो वहां पर रखेगी तो वह जितनी आइटम्स आपकी मूवमेंट रहे उतना आपको ध्यान में रखने की जरूरत है। 

तो आपको कौन सी आपकी फ़ास्ट मूविंग आइटम है, कौन सी आपकी स्लो मूविंग आइटम है, कौन सी सीजनल आइटम है तो इस हिसाब से ही आप स्टॉक को मेन्टेन करके चलिए। 

हो सकता है कि एक दो बार गलती हो जाए और आपका स्टॉक फस जाए, वह तो चलता रहता है, कुछ एक्सपायरी भी चलती रहती है लेकिन फिर भी आप 100 परसेंट तो देखो किसी चीज में निश्चित नहीं हो सकते हैं। 

आपसे गलती होगी अगर आप बिजनेस हो लेकिन फिर भी आप उसको अगर 90% तक 80% तक 95 % तक आप उसको मैनेज करने में कामयाब रहते हो तो आपको फाइनेंसियल  सेट बैक की बहुत कम चांसेस है कि आपको फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स आएगी, आपको आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। 

तो स्टॉक मैनेजमेंट भी आपके फाइनेंसियल मैनेजमेंट में, आपकी इनवेस्टमेंट में, एक मेजर रोल तय करता है। 

निष्कर्ष

तो इन पांच टिप्स के बारे में मैंने यहाँ बात करिए है जो वह बहुत जरूरी है अगर आपने फाइनेंस को अच्छी तरह मैनेज करना चाहते हो। अपनी कंपनी को, अपने बिजनेस को एक financial वे में स्ट्रांग बनाना चाहते हो और भी बहुत सारे टिप हो सकते है और बहुत सारे फाइनेंसियल मैनेजमेंट के तरीके हो सकते हैं। 

अगर आप के पास इससे अच्छा आइडिया है तो आप मेरे को कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताइएगा क्योंकि वह मेरे लिए बेनिफिशियल होगा। मैं भी उसको अपने बिजनेस पर एलिमेंट करके देखूंगा और better रिजल्ट आएंगे तो मेरा भी फायदा होगा, आपका भी फायदा होगा और रीडर्स का भी फायदा होगा। 

तो उम्मीद करता हूँ यह इनफार्मेशन आपको अच्छी लगी होगी 

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